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‘समग्र समृद्धि’ की देवी है लक्ष्मी

अस्तित्व विचारशील होने का अहसास
अस्तित्व विचारशील होने का अहसास
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बचपन में… प्राइमरी औऱ मिडिल स्कूल के दिनों में दीपावली पर निबंध तैयार करते हुए पहली बार जाना था कि राम के अपना वनवास काटकर अयोध्या लौटने के उपलक्ष्य में घर-घर दीए जलाए जाते हैं और दीपावली मनाई जाती है। समझने की दहलीज के थोड़ा औऱ करीब आने पर दीपावली का संबंध हमारी पारंपरिक अर्थव्यवस्था से भी जुड़ा पाया, लेकिन जैसा कि होता है, हम हमेशा धर्म या परंपरा की सूक्ष्म तत्वों की अनदेखी करते रहे हैं। तभी तो अध्यात्म की गहरी सांस्कृतिक विरासत वाली संस्कृति में धन की देवी लक्ष्मी की पूजा का उत्सव इतनी भव्यता से मनाए जाने की परंपरा ने कई बार उलझाया है। कई बार ये सवाल उठा कि ये कैसा विरोधाभास है, ये कैसी उलटबाँसी है… एक तरफ संयम और संतुलन का पाठ और दूसरी तरफ भौतिकता का ऐसा उत्सव…। दीपावली पर लक्ष्मी-पूजन की परंपरा जैसे हमें मुँह चिढ़ाती रही है, लेकिन जैसे-जैसे इस उत्सव के आयामों को समझा, लगा कि हमने इसे ग्रहण ही गलत तरीके से किया है।
बचपन में न जाने किन-किन बातों पर ये सुना कि ‘ऐसा करोगे तो दरिद्र ही रहोगे’। मसलन जब बच्चे ज्यादा झगड़ते तो कहा जाता जहाँ लड़ाई-झगड़ा होता हैं, वहाँ लक्ष्मी नहीं ठहरती है, जहाँ बीमारी, गंदगी हो वहाँ लक्ष्मी नहीं ठहरती और तो और जहाँ कंजूसी हो वहाँ भी बरकत नहीं रहती… मतलब… ‘लक्ष्मी’ सद् अवधारणा है। लक्ष्मी सिर्फ धन की देवी नहीं हैं, वो जीवन की समग्रता का पर्याय है। लक्ष्मी मतलब स्वास्थ्य, लक्ष्मी मतलब स्वच्छता, मतलब शांति, उदारता… जहाँ सब कुछ अच्छा हो वहाँ लक्ष्मी ठहरती है। फिर दीपावली पर होने वाले पूजन का नाम सिर्फ लक्ष्मी पूजन है, पूजन में तो बुद्धि के देवता गणपति और कला-ज्ञान की देवी सरस्वती भी शामिल हुआ करती है।
सवाल ये उठा था कि दीपावली यदि महज लक्ष्मी-पूजन का ही पर्व होता तो एक ही दिन होता… ऐसा क्यों है कि दीपावली को हम पाँच दिन तक मनाते हैं?
पाँच दिन तक हम दीपावली क्यों मनाते हैं, और यदि मनाते हैं तो फिर सिर्फ लक्ष्मी पूजा ही क्यों नहीं करते हैं? पहले दिन धनवंतरि का जन्म दिन मनाते हैं, दूसरे दिन नरक चौदस, तीसरे दिन लक्ष्मी पूजन, चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पाँचवे दिन भाई-दूज और यम द्वितिया मनाते हैं…। सोचें तो लगता है कि दीपावली सिर्फ धन की देवी लक्ष्मी की पूजा का उत्सव ही नहीं है। ये जीवन की समग्रता का उत्सव है। अच्छा स्वास्थ्य, उदार मन, मोक्ष, समृद्धि, अर्थ और रिश्ते… सभी का पर्व है दीपावली।
लक्ष्मी मतलब विष्णु की अर्धांगिनी… विष्णु मतलब प्रजापालक… लक्ष्मी सुख और समृद्धि की देवी है, सिर्फ समृद्धि की नहीं। समृद्धि सुख के रास्ते आती हैं, तभी तो सारे सद् जाकर समृद्धि में मिलते हैं। ये हमारी कुंद बुद्धि है कि हमने लक्ष्मी को सिर्फ समृद्धि से जोड़े रखा है…जबकि लक्ष्मी एक विस्तृत विचार है, एक गहरी पौराणिक अवधारणा… यदि लक्ष्मी सिर्फ समृद्धि की देवी होती तो वे इंद्र की अर्धांगिनी होती, वे विष्णु की है और शायद ही किसी पौराणिक दंपत्ति को ऐसे दर्शाया जाता है, जैसा कि लक्ष्मी-विष्णु को…।
फिर दीपावली कैसे हुआ सिर्फ समृद्धि का उत्सव…! दीपावली मतलब सद् का उत्सव… पूरी सृष्टि के लिए सार्वजनिक कल्याण का उत्सव… जीवन की समग्रता का उत्सव, मानवता के सर्वांग उत्थान का उत्सव है, इसे सिर्फ समृद्धि से जोड़कर हम इस उत्सव का अपमान कर रहे हैं।
तो दीपावली पर सिर्फ दीयों की रोशनी काफी नहीं है, रोशन तन-मन-जीवन का पर्व है दीपावली… उदारता, बुद्धि, विद्या, कला, स्वास्थ्य, अध्यात्म, प्रेम और सुख की समृद्धि का पर्व है दीपावली… लक्ष्मी सिर्फ समृद्धि नहीं… समग्र समृद्धि की कामना है, ‘सर्वे भवंतु सुखिनं’ ही है बस दीपावली और लक्ष्मी पूजन का उत्स…।

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