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छुट्टी का एक दिन…

अस्तित्व विचारशील होने का अहसास
अस्तित्व विचारशील होने का अहसास
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ऐसी छुट्टी भी कब आती है… !
ना घड़ी को साधना हो
ना किसी को आना, ना कहीं जाना हो…
कोई उलझन, भटकाव, बेचैनी, दुविधा, बोझ, महत्वाकांक्षा और विचार भी ना हो…
ना कुछ पाना हो, ना कुछ करना हो…
ना कोई लक्ष्य हो ना कोई प्रयास
ना अतीत का कोई सिरा मिले ना भविष्य से किसी सुराग की हो आस
बस आज हो, अभी हो, एक ही पल हो…
साफ धूप भरे आसमान पर बादलों की कतरनें उभरती हो
पंछियों का कलरव और झींगुरों की झाँय-झाँय हो
दूर कहीं से आती लोकगीतों की आवाज
हवाओं के सहलाने पर सिहरती पेड़ों की फुनगियाँ हो
चिड़ियों का फुदकना और तितलियों का उड़ना हो
टीन की छत पर बंदरों की उछल-कूद हो
आसपास हो पहाड़ों का साया
तन शिथिल और मन हवाओं का हमसफर हो रहा हो…
ऐसी छुट्टी भी कब आती है…

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