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गुम हो चुकी लड़की…! (छठी किश्त)

अस्तित्व विचारशील होने का अहसास
अस्तित्व विचारशील होने का अहसास
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गतांक से आगे….
पार्टी हॉल में तेज रोशनी….तेज संगीत के बीच रिज़वान ने शब्दा और कुछ और दोस्तों से मिलवाया, फिर मैंने उससे पार्टी इंजाय करने का कहकर ड्रिंक लिया और एक कोना पकड़ लिया। आते-जाते, नाचते-हँसते एक दूसरे से मिलते बतियाते लोगों को देखते हुए मेरी नजर एक लड़की पर ठहरी… ये यहाँ क्या कर रही है? वह डांस फ्लोर पर थी…। पता नहीं कैसे उसने भी मुझे देखा और आश्चर्य से मेरी ओर देखकर हाथ हिलाया और मेरे सामने आकर खड़ी हो गई।
कब आए हिटलर के देश से….?—उसी तरह के तेवर से पूछा।
हिटलर का देश…!— मैंने हँस कर कहा।- अब तो वो लोग भी उससे पीछा छुड़ाना चाहते हैं, तुम क्यों उन बेचारों के पीछे पड़ी हो?
मैंने उसे इस बीच देखा…लड़कों की तरह कटे हुए बाल… गहरा मेकअप और काले रंग के स्ट्रेप टॉप के साथ उसी रंग का टाईट स्कर्ट और पेंसिल हील…. बहुत बदली और अपरिचित लगी वह मुझे।
इतिहास से कभी भी भागा नहीं जा सकता….वो गाना नहीं सुना… आदमी जो कहता है, आदमी जो करता है जिंदगी भर वो दुआएँ पीछा करती है….संदर्भ से समझना… खैर तुम क्या गाना-वाना समझो तुम तो औरंगज़ेब हो….।— उसने कहा।
अरे, पहले हिटलर, फिर औरंगज़ेब….क्या इन दिनों बहुत इतिहास पढ़ रही हो….तुम तो साहित्य की स्टूडेंट थी।
दुनिया में कुछ भी साहित्य से बाहर नहीं है, खैर हम फिर से नहीं झगड़ेंगे। तुम यहाँ कब आए….?
आज ही, और तुम यहाँ क्या कर रही हो?
बस यूँ ही सीरियल लिख रही हूँ, तुम ठहरे कहाँ हो?
रिज़वान के घर… दो-एक दिन में घर जाऊँगा।
क्यों नहीं तुम कल मेरे साथ डिनर करो…. बातें करेंगे। कुछ इतिहास याद करेंगे।
बिना कुछ सोचे मैंने उसे डिनर के लिए हाँ कर दी।
क्रमशः

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