- 93 Posts
- 692 Comments
जब सब कुछ सामान्य और अपनी गति से चलते हुए एकरस हो रहा हो… तब एकाएक कुछ ऐसा हो, जिसकी प्रत्याशा न हो और अनचाहे मेहमान की तरह आ टपके अकेलापन…. तब…? कल शाम से ऐसे ही अकेलेपन से जूझ रहे हैं। रात को सोने तक का सारा वक्त गर्क़ किया टीवी और कम्प्यूटर पर…. कोशिश की, लेकिन पढ़ना भी नहीं भाया…। बहुत सारा समय यूँ ही सामने बिखरा पड़ा… आम दिनों में क्षण-क्षण को झरते हुए देखते और सहेज नहीं पाने की स्थायी कसक के साथ रहते हम आज इतने क्षण यूँ ही आसपास फैले हुए हैं और समझ ही नहीं पा रहे हैं कि इनका आखिर किया क्या जाए? सुबह उठे को चाय के कप के साथ सामने पड़े थे अखबार… सरसरी तौर पर देखा (याद भी नहीं कि क्या देखा) कुछ को पढ़ने की कोशिश भी की…. ‘छूटती नहीं है ज़ालिम मुँह से लगी हुई की तरह’… लेकिन फिर यूँ ही एक सवाल मन में सरसराया (ये सवाल शायद पहली बार) दुनिया जहान के बारे में जानकारी पा लेने से क्या बदल जाएगा… और जानने के बाद क्या हो जाएगा…?
सवाल शायद सही नहीं है, हमने बरसों बरस इस जानने की हवस को दिए हैं, अब भी देंगे… लेकिन आज यह है। एकाएक दिमाग को खंगाला तो पाया कि इसमें कितनी बेकार की जानकारी और सूचनाएँ पड़ी है, कुछ ऐसी भी जिसका कभी-कहीं उपयोग नहीं होगा, फिर भी है। एक बार फिर वह चाह जागी कि काश! दिमाग में से भी काम-काम का रख कर बाकी सबको रद्दी की तरह निकाल पाते, लेकिन यहाँ यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। कभी सोचे तो पाएँगें कि हम दुनिया को जितना जानते चले जाते हैं, खुद से उतना ही दूर होते चले जाते हैं। खुद से भागने के लिए ही शायद हम दुनिया को जानते हैं, लेकिन इससे हम हासिल क्या कर पाते हैं? बेकार का उद्वेलन…. उलझन… ज्यादातर बेबसी… औऱ आखिर में एब्सर्ड का अहसास… क्योंकि जो कुछ है, वह है, हम उसे बदलने के लिए कुछ नहीं कर पाते हैं और यदि करेंगे भी तो क्या औऱ कितना बदल पाएँगें? तो फिर इस बेकार की कवायद का क्या मूल्य? सारी दुनियावी चीजों से ‘अंतर’ न तो बहला है और न बहलेगा, फिर भी हम खुद को सालोंसाल इसी में गर्क़ किए रहते हैं। किस प्रत्याशा से….? हम सब कुछ इसलिए करते हैं कि खुद को खुश रख सके… शायद ऐसी चीजों की खोज करते रहते हैं, जो हमें सबसे ज्यादा खुश रख करें, लेकिन क्या हम ऐसा कर पाते हैं? पूरा जीवन हम इसी प्रयोग को दे देते हैं, और फिर हमारे हाथ क्या आता है? यह महज एक सवाल है, जिसका उत्तर अब तक तो नहीं मिला। यह भी सही है कि कल शायद यह सवाल नहीं होगा…. और कल से फिर हम जानने के जुनून में खाक़ होने लगेंगे… यह सवाल आज है।
हाल ही में एक खूबसूरत एसएमएस आया
अकबर ने बीरबल से कहा – कोई ऐसी बात बताओ, जिसे खुशी में सुनो तो ग़म हो और ग़म में सुनो तो खुशी हो।
बीरबल ने जवाब दिया – ये वक्त गुज़र जाएगा….
कुछ समझे….?
Read Comments