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सावन आनंदमय हो

अस्तित्व विचारशील होने का अहसास
अस्तित्व विचारशील होने का अहसास
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बड़े दिनों बाद पूरी और बहुप्रतिक्षित छुट्टी…..परेशानी के उग आए छालों को साफ करने के बाद के जख्म…..। मौसम की मिठाई और मन की खटाई मिलकर गुजराती स्वाद रचती सुबह आई थी। रात की रिमझिम का हैंगओवर सुबह तक बना हुआ था। ताजा नहाई हुई सुबह का साँवला चेहरा आकर्षित कर रहा था। मिट्टी की नमी से दुर तक मन की जमीं भी नम हुई जा रही थी…. मन को साधने और मौसम के साथ कदमताल करने की कोशिशें चल रही थी…. चाहत तो थी कि मूड का उखड़ापन कुछ कम हो जाए…. सावन का रूप रंग गहरे उतर जाए….। बरसात में फूल आई दीवार सा मन हो रहा था, इसलिए ऐलान कर दिया था कि आज कोई ऐसी बात ना हो जिससे मन की दीवार की पपड़ियाँ निकलने लगे तो सारे जतन उसी दिशा में हो रहे थे…..।
समय तेजी से भाग रहा था और हम उसका सिरा पकड़े उसके चारों कोनों को तानने की कोशिश कर रहे थे…चाहा तो था कि उसे तंबू की तरह तान लें और मनमौजी हो जाए….लेकिन एक कोने को थामे तो दूसरा सिकु़ड़ रहा था…आखिर कोशिश ही छोड़ दी। चैन किसी भी सूरत नहीं था।
चचा ग़ालिब हर जगह आ खड़े हो जाते हैं यहाँ भी आ गए।– अब तो घबरा के ये कहते है कि मर जाएँगें, मर के भी चैन ना आया तो किधर जाएँगें।
लेकिन सावन आया है…. सुबह का साँवलापन ढ़ेर सारे रंगों से सजकर चुपके से आता है….. काली घटाएँ जब बरस कर रीत जाती है तो यूँ लगता है कि सुनहरी सुबह फिर आ गई हो…प्रकृति के श्रृंगार का उत्सव है। आँगन में चंपा और गुलाब सुबह से महकने लगते है तो गुलमोहर भी अभी थका नहीं है। सागौन के बड़े-बड़े पत्ते हरिया रहे हैं। रात में चमेली और जूही गमकने लगती है। बोगनबेलिया तो खैर सदाबहार है ही। कितने रंग सुबह से शाम तक आते और झिलमिलाते हैं। मन की सारी धूसरता सावन की रिमझिम में धुल कर बह निकली….। बहुत कुछ बहता aऔर उमड़ता है मन में लेकिन क्या करें समय का इलेस्टिक सिकुड़ता ही जा रहा है, फिर भी जो दिखता है वह मन में उतरता तो है ही। तो सावन की उदार हरियाली सबको सुंदर करें, मन मयूर हो और हरदम सावन मनें, इसी कामना के साथ सावन आनंदमय हो।

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